बुद्धिमें ब्याधि!
मन के खींचय छै दस गो घोड़ा, नाम ओकर छै ज्ञानेन्द्रिय!
नियम संयम अनुशासन बान्हय लोक बनै छै जितेन्द्रिय!
विश्वंभर भर सभक जीवन - मुँह तैयो अनकर ताकी,
पेटक अग्नि धधकैत ज्वाला - शम् हो छुधा काजहि काजी!
मन के .....
आदम जीवन घुमुवा अनर्गल - तैयो गाड़ी चैल चुकलै,
समय बितैत संस्कृति सहारे - आधुनिकता में प्रविसि भेलै,
मन के खींचय....
मैटक गुण सँ खेती उपजय, चरितहि उपजय गुणी ज्ञानी,
भोगक त्यागहि तपी बनि साफल बनय संत-मुनि-ऋषि जानी,
मन के खींचय.....
वेद-पुराण वा श्रुति-स्मृति ईष्टक ऐश्वर्य अनन्त छै,
पठन मनन निश्छल कर्महि सँ जानैत जीवन अन्त छै,
मन के खींचय....
राजस तामश सात्त्विकता के मिलल प्रकृति बखान छै,
उचित लवण संयोग मात्र सँ तिमन महिमा महान छै,
मन के खींचय....
वात पित्त ओ कफ के मल-जल त्यागैत शरीर सुखहाल छै,
विभिन्न ब्याधि के संक्रमण सँ मानव जीवन बदहाल छै,
मन के खींचय.....
कृष्ण कहैथ जे राग-द्वेष बस सभटा फसादक जैड़ छै,
निश्छल कर्म आ समता दृष्टि तखनहि भेटैय मोक्ष छै,
मन के खींचय....
गीता ज्ञान सँ बनल जनकजी राजा एक विदेह छै,
मिथिला धरती अयली सीता तैयो सभके संदेह छै,
मन के खींचय....
अपन आन के माया बड़का घेरने ‘प्रवीण’ के दहोंदिश सँ,
जँ चिक्का फाँगय के होइ तँ बचय के हेतै छिटकी सँ,
जँ चिक्का फाँगय के होइ तँ बचय के हेतै घूरकी सँ,
होऽऽ जँ चिक्का फाँगयके होइ तँ बचयके हेतै भभकी सँ,
छिटकी घूरकी भभकी सभटा फुसियांही के धमकी सँ,
मन के खींचय....
हरिः हरः!
Thursday, February 2, 2012
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